पटना न्यूज डेस्क: पटना एम्स में डॉक्टर यदुवेंद्र साहू की मौत के मामले ने एक बार फिर मेडिकल कॉलेजों में काम के बोझ और प्रशासनिक लापरवाही को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस संवेदनशील मामले की जांच के लिए दिल्ली से तीन सदस्यीय मेडिकल टीम शुक्रवार को पटना पहुंची। जांच में दरभंगा एम्स के निदेशक भी शामिल हुए और करीब तीन घंटे तक जूनियर और सीनियर डॉक्टरों के साथ बातचीत की गई।
बैठक के दौरान जूनियर डॉक्टरों ने बताया कि उन्हें 36-36 घंटे की लगातार ड्यूटी करनी पड़ती है क्योंकि विभागों में रोस्टर सिस्टम लागू नहीं है। नियम के अनुसार 12 घंटे से ज्यादा की ड्यूटी नहीं होनी चाहिए, लेकिन एम्स में इसका पालन नहीं किया जा रहा। छात्रों का यह भी आरोप है कि सीनियर डॉक्टर खुद को ड्यूटी से बचाते हैं और सारा बोझ जूनियर पर डाल देते हैं। इससे उनकी मानसिक और शारीरिक स्थिति पर गहरा असर पड़ रहा है।
छात्रों ने खुलासा किया कि इससे पहले भी हरियाणा के एक डॉक्टर ने दो साल पहले इसी तरह के कारण आत्महत्या की थी। उस वक्त भी रोस्टर सिस्टम लागू करने की मांग उठी थी, लेकिन अब तक इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। डॉक्टर यदुवेंद्र साहू की आत्महत्या को भी इसी लापरवाही का नतीजा बताया जा रहा है।
एम्स के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि दो साल पहले डॉ. नीलेश की मौत के मामले को प्रेम प्रसंग का रूप देकर दबा दिया गया था और अब फिर वही तरीका अपनाया जा रहा है। एम्स प्रशासन से जब इस पर प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की गई तो कार्यकारी निदेशक और संबंधित विभागाध्यक्ष ने न तो कॉल रिसीव किया और न ही व्हाट्सएप मैसेज का जवाब दिया। ऐसे में छात्रों की चिंताओं को नजरअंदाज करना और भी गंभीर सवाल खड़े करता है।