पुणे न्यूज डेस्क: बॉम्बे हाईकोर्ट ने 2010 में पुणे की जर्मन बेकरी विस्फोट मामले में दोषी हिमायत बेग को राहत देने से इनकार कर दिया है। बेग पिछले 12 साल से नासिक जेल में एकांतवास में है और उसने कोर्ट में याचिका दायर कर खुद को वहां से शिफ्ट करने की मांग की थी। उसका दावा था कि इस स्थिति का उसकी मानसिक सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है। लेकिन जस्टिस रेवती मोहिते ढेरे और जस्टिस नीला गोखले की बेंच ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि बेग के मानसिक तनाव को लेकर किए गए दावे में कोई ठोस आधार नहीं दिखता।
कोर्ट ने कहा कि जहां तक बेग को जेल में कोई काम सौंपने की बात है, तो यह निर्णय जेल प्रशासन जेल नियमों के मुताबिक करेगा। सरकारी वकील ने कोर्ट में दलील दी कि ब्लास्ट जैसे गंभीर अपराधों में दोषी पाए गए कैदियों को सुरक्षा कारणों से अन्य कैदियों से अलग रखा जाता है। साथ ही, जेल में "एकांतवास" जैसी कोई विशेष व्यवस्था नहीं है। सरकारी पक्ष ने यह भी स्पष्ट किया कि बेग को जिस "अंडा सेल" में रखा गया है, वह एक हाई-सिक्योरिटी बैरक है, जिसमें पर्याप्त रोशनी, हवा, व्यायाम करने की जगह, टीवी, एफएम रेडियो, समाचार पत्र और फोन की सुविधा भी उपलब्ध है।
बेग के वकील मुजाहिद अंसारी ने कोर्ट में तर्क दिया कि उनके मुवक्किल को पिछले 14 साल से जेल में रखा गया है और वह लगातार "अंडा सेल" में बंद रहने से मानसिक तनाव झेल रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि बेग का परिवार आर्थिक रूप से कमजोर है, इसलिए वह जेल में कोई काम करके मदद करना चाहता है। वकील ने आग्रह किया कि अगर बेग को सामान्य बैरक में भेज दिया जाए, तो इससे किसी को कोई खतरा नहीं होगा। हालांकि, सरकारी पक्ष ने कहा कि जेल में पहले भी हाथापाई और हमलों की घटनाएं हो चुकी हैं, इसलिए सुरक्षा का ध्यान रखना जरूरी है।
कोर्ट ने सितंबर 2012 के एक सर्कुलर का हवाला देते हुए कहा कि उच्च जोखिम वाले कैदियों को विशेष बैरकों में रखने का आदेश पहले से मौजूद है। अदालत ने जेल प्रशासन के इस दावे को स्वीकार किया कि बेग को जेल में इंसानों जैसा व्यवहार मिल रहा है और वह पूरी तरह अकेला नहीं है। कोर्ट ने यह मानने से इनकार कर दिया कि उसे "असली" एकांत कारावास में रखा गया है, इसलिए उसे सामान्य बैरक में शिफ्ट करने का कोई कारण नहीं है। हालांकि, अदालत ने निर्देश दिया कि जेल प्रशासन बेग को नियमों के तहत कोई काम सौंप सकता है ताकि वह व्यस्त रह सके।