पुणे न्यूज डेस्क: पुणे पुलिस ने पिछले साल दिसंबर में 52 वर्षीय शिक्षक को 39 स्कूली छात्राओं के यौन शोषण के आरोप में गिरफ्तार किया था। हालांकि, सोमवार को एक विशेष अदालत ने इस गिरफ्तारी को गैरकानूनी करार देते हुए शिक्षक को येरवडा केंद्रीय कारागार से रिहा करने का आदेश दिया। अदालत ने पाया कि पुणे ग्रामीण पुलिस ने गिरफ्तारी की अनिवार्य प्रक्रियाओं का सही तरीके से पालन नहीं किया था, जिससे यह कार्रवाई कानून के खिलाफ हो गई।
अदालत ने अपने चार पन्नों के आदेश में स्पष्ट किया कि शिक्षक को 24 दिसंबर 2024 को गिरफ्तार किया गया था, लेकिन रिकॉर्ड में ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिला जिससे यह साबित हो कि उन्हें लिखित में गिरफ्तारी के कारणों की जानकारी दी गई थी। पुलिस ने इस मामले में आवश्यक कानूनी प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया, जिससे उनकी हिरासत को गैरकानूनी माना गया। अदालत ने कहा कि यह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है और ऐसी गिरफ्तारी को स्वीकार नहीं किया जा सकता। इसी आधार पर शिक्षक को रिहा करने का निर्देश दिया गया।
विशेष अदालत की न्यायाधीश कविता शिर्भाते ने आदेश दिया कि रिहाई के आठ दिनों के भीतर शिक्षक को 25,000 रुपये का निजी ज़मानत बांड भरना होगा। शिक्षक के वकील विपुल दुशिंग ने बताया कि अदालत के इस फैसले के बाद उनके मुवक्किल को जेल से रिहा कर दिया गया है, लेकिन पुलिस द्वारा चार्जशीट दाखिल करने के बाद उन्हें मुकदमे का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22(1) और दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 50 के अनुसार, किसी भी गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधार और जमानत के अधिकार के बारे में सूचित करना एक अनिवार्य प्रक्रिया है।
इस मामले में पुणे ग्रामीण पुलिस का पक्ष रखते हुए पुलिस अधीक्षक पंकज देशमुख ने कहा कि उन्होंने शिक्षक की गिरफ्तारी से पहले सभी आवश्यक कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया था। अदालत के आदेश के खिलाफ पुलिस ने राज्य अभियोजन पक्ष से बॉम्बे हाई कोर्ट में आपराधिक पुनरीक्षण याचिका दायर करने की सिफारिश की है। पुलिस का मानना है कि गिरफ्तारी कानून सम्मत थी और वे अदालत के फैसले को चुनौती देंगे।