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साल 2025 की शुरुआत से ही भारत और आसपास के क्षेत्रों में भूकंप की घटनाओं में लगातार इजाफा हुआ है। खासकर दिल्ली-एनसीआर समेत कई इलाकों में भूकंप के हल्के-हल्के झटके महसूस किए जाने लगे हैं, जिससे आम लोगों में चिंता की स्थिति बन गई है। 10 जुलाई के बाद से अब तक देश के विभिन्न हिस्सों में कई बार भूकंप आए हैं, जिनकी तीव्रता 3.2 से लेकर 4.4 तक मापी गई है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ये झटके किसी बड़े भूकंप या प्राकृतिक आपदा की चेतावनी हैं? आइए जानते हैं इस विषय में वैज्ञानिक क्या कह रहे हैं।
पिछले कुछ दिनों में आए भूकंप के झटकों की जानकारी
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19 जुलाई 2025: उत्तराखंड के चमोली जिले में सुबह 3.3 तीव्रता का भूकंप आया। यह भूकंप लगभग 10 किलोमीटर गहराई पर महसूस किया गया। इससे पहले 8 जुलाई को भी इसी क्षेत्र में 3.2 तीव्रता का भूकंप आ चुका था।
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17 जुलाई 2025: हरियाणा के रोहतक में 3.3 तीव्रता का भूकंप दर्ज किया गया।
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11 जुलाई 2025: झज्जर (हरियाणा) में 3.7 तीव्रता का भूकंप आया, जो धरती के अंदर 10 किलोमीटर की गहराई में था।
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10 जुलाई 2025: झज्जर में 4.4 तीव्रता का भूकंप महसूस किया गया, जिसके झटके दिल्ली-एनसीआर, फरीदाबाद और गुरुग्राम तक पहुंचे।
क्यों बढ़ रही हैं भूकंप की घटनाएं?
आईआईटी कानपुर के पृथ्वी विज्ञान विभाग के प्रोफेसर जावेद मलिक के अनुसार, भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया में भूकंप के पीछे सबसे बड़ा कारण "सागाइंग फॉल्ट" है। इसके अलावा बंगाल के सिलीगुड़ी में मौजूद गंगा-बंगाल फॉल्ट भी भूकंप की सक्रियता के लिए जिम्मेदार है।
प्रोफेसर मलिक के मुताबिक, ये फॉल्ट लाइनें पिछले 150-200 वर्षों से सक्रिय हैं और समय-समय पर भूकंप के झटके देती रही हैं। हिमालय क्षेत्र में भी कई सक्रिय फॉल्ट लाइन मौजूद हैं, जो भूकंप के लिहाज से बेहद संवेदनशील हैं। दिल्ली समेत पूरे उत्तर पूर्व और कश्मीर क्षेत्र को भूकंप के लिहाज से जोन-5 माना जाता है, यानी अत्यंत संवेदनशील क्षेत्र।
टेक्टोनिक प्लेटों की भूमिका
धरती की सतह पर कई बड़ी-बड़ी टेक्टोनिक प्लेटें हैं जो धीमी गति से हिलती-डुलती रहती हैं। यूरेशियन प्लेट और भारतीय प्लेट के बीच टकराव के कारण ऊर्जा का संचय होता है, जो जब अचानक मुक्त होता है तो भूकंप आता है।
उत्तर-पूर्व भारत में महेंद्रगढ़-देहरादून फॉल्ट, दिल्ली-हरिद्वार रिज, और सोहना-मथुरा दरार जैसी जगहें भूकंप के केंद्र हो सकती हैं। इन फॉल्ट लाइनों की गहराई 150 से 200 किलोमीटर तक हो सकती है, लेकिन आमतौर पर कम गहराई पर आए भूकंप ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं।
क्या बढ़ते झटके बड़ा खतरा हैं?
अभी तक के वैज्ञानिक आंकड़ों के अनुसार, उत्तर-पूर्व भारत में इस साल जो भूकंप के झटके महसूस किए गए हैं वे जोन-4 के हैं, जो आमतौर पर भारी नुकसान नहीं पहुंचाते। कई विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे झटके बड़े भूकंप की पूर्वसूचना हो सकते हैं, लेकिन जरूरी नहीं कि हर बार ऐसा ही हो।
सागाइंग फॉल्ट के कारण आने वाले झटकों का खतरा बना रहता है, खासकर म्यांमार, थाईलैंड और जापान जैसे पूर्वी एशियाई देशों में। इसलिए लगातार निगरानी और रिसर्च जरूरी है।
दिल्ली-एनसीआर की चिंता
दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र में लगातार भूकंप के झटके लोगों को चिंतित कर रहे हैं क्योंकि यहां की अधिकांश इमारतें पुरानी और भूकंपरोधी तकनीक के बिना बनी हैं। किसी भी बड़ा झटका आने पर जान-माल का नुकसान हो सकता है।
इसलिए विशेषज्ञों की सलाह है कि नए भवनों का निर्माण भूकंपरोधी तकनीक से किया जाना चाहिए और पुराने निर्माणों को भी मजबूत किया जाना चाहिए। इससे भूकंप आने की स्थिति में नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
भूकंप क्यों आते हैं?
भूकंप के कारणों को समझना बेहद जरूरी है। यह तब होता है जब धरती के अंदर टेक्टोनिक प्लेटें आपस में टकराती हैं या एक-दूसरे के ऊपर खिसक जाती हैं। इस प्रक्रिया में जब जमा हुई ऊर्जा अचानक मुक्त होती है तो धरती में कंपन होने लगता है।
भूकंप का केंद्र या "फोकस" वह जगह होती है जहां ऊर्जा उत्पन्न होती है और वहां से ऊर्जा भूकंप के रूप में सतह तक फैलती है। सतह पर यह कंपन के रूप में महसूस किया जाता है, जिससे भूकंप के झटके महसूस होते हैं।
निष्कर्ष
साल 2025 में भारत और आसपास के इलाकों में भूकंप की घटनाएं बढ़ रही हैं, जो प्राकृतिक कारणों जैसे फॉल्ट लाइनों और टेक्टोनिक प्लेट्स के टकराव के कारण हैं। फिलहाल जो झटके आ रहे हैं वे अपेक्षाकृत कम तीव्रता के हैं और बड़े नुकसान की संभावना कम है, लेकिन लगातार निगरानी और तैयारी जरूरी है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस क्षेत्र में और गहन अध्ययन और रिसर्च की आवश्यकता है ताकि भविष्य में किसी भी बड़े भूकंप के खतरे को पहले से पहचानकर समय रहते बचाव किया जा सके। साथ ही आम जनता को भी जागरूक किया जाना चाहिए कि वे भूकंपरोधी निर्माण और बचाव उपायों को अपनाएं, जिससे जीवन और संपत्ति की सुरक्षा हो सके।