देशभर में क्फ संशोधन अधिनियम (संशोधित नागरिकता कानून) को लेकर कई मुस्लिम संगठनों द्वारा विरोध प्रदर्शन किए जा रहे हैं। इस कानून के खिलाफ लोगों की नाराजगी कई राज्यों में सड़कों पर देखने को मिल रही है। पश्चिम बंगाल, विशेषकर मुर्शिदाबाद, इस विरोध का प्रमुख केंद्र बनकर उभरा है, जहां हाल ही में हुई हिंसा में दो लोगों की जान भी गई। इसी बीच सोशल मीडिया पर एक तस्वीर ने सनसनी फैला दी है, जिसे पश्चिम बंगाल के विरोध प्रदर्शन से जोड़कर तेजी से शेयर किया जा रहा है।
इस वायरल होती तस्वीर की फैक्ट चेकिंग की, तो यह दावा पूरी तरह फर्जी और भ्रामक निकला। असल में यह तस्वीर बंगाल की नहीं बल्कि राजस्थान के जोधपुर की है और साल 2016 की है।
क्या है वायरल तस्वीर का दावा?
इस वायरल तस्वीर में एक व्यक्ति को एक पुलिसकर्मी का जबड़ा पकड़ते हुए देखा जा सकता है। इसे सोशल मीडिया पर इस दावे के साथ साझा किया जा रहा है कि यह तस्वीर पश्चिम बंगाल में सीएए विरोध के दौरान की है।
एक यूजर ने तस्वीर को शेयर करते हुए लिखा:
“लिल्लाह, इतना भाई-चारा। अब्दुल बंगाल पुलिस जबड़े का नाप ले रहा है, इलाज करने के लिए।”
वहीं एक अन्य यूजर ने फेसबुक पर लिखा:
“बंगाल पुलिस के अधिकारी के जबड़े का परीक्षण करता एक बांग्लादेशी दंत चिकित्सक। ममता बनर्जी की सरकार के कलपुर्जों को दुरुस्त करते क्रांतिकारी हर जगह मिल सकते हैं।”
इन पोस्ट्स को देखकर कई यूजर्स भ्रमित हो गए और उन्होंने इसे पश्चिम बंगाल के विरोध प्रदर्शनों की तस्वीर मान लिया। लेकिन जब इसकी गहराई से जांच की गई, तो असलियत कुछ और ही निकली।
फैक्ट चेक: क्या है इस तस्वीर की सच्चाई?
फैक्ट चेक टीम ने जब इस तस्वीर को गूगल लेंस की मदद से जांचा, तो यह तस्वीर 28 मई 2016 की पाई गई। यह तस्वीर राजस्थान के जोधपुर शहर की है, जिसका पश्चिम बंगाल से कोई लेना-देना नहीं है।
जब इसे रिवर्स इमेज सर्च के माध्यम से जांचा गया, तो यह तस्वीर राजस्थान पत्रिका के फेसबुक पेज पर भी मिली। उस पोस्ट में साफ लिखा था:
“ठेले हटाए तो तोड़ी हदें, हेड कॉन्स्टेबल से बदतमीजी, मना किया तो पकड़ा मुंह।”
इससे यह स्पष्ट होता है कि यह तस्वीर किसी कानून विरोधी आंदोलन की नहीं, बल्कि नगर निगम की नियमित कार्रवाई के दौरान की है।
घटना का पूरा विवरण
जांच के दौरान यह जानकारी सामने आई कि जोधपुर के घंटाघर क्षेत्र को नगर निगम द्वारा नो-ठेला जोन घोषित किया गया था। इसके बावजूद, कई ठेलेवाले वहां कारोबार कर रहे थे। जब पुलिस ने अवैध ठेलों को हटाने की कार्रवाई शुरू की, तब एक ठेला चालक ने हेड कॉन्स्टेबल शोभाराम से बहस की और उनका मुंह पकड़ लिया। यह तस्वीर उसी घटना के दौरान ली गई थी।
यह एक स्थानीय प्रशासनिक विवाद था, ना कि किसी सांप्रदायिक या राजनीतिक आंदोलन का हिस्सा।
क्यों है यह भ्रामक तस्वीर खतरनाक?
इस तस्वीर को जिस तरीके से सांप्रदायिक रंग देकर पेश किया जा रहा है, वह बेहद चिंताजनक है। इससे न केवल असली मुद्दों से ध्यान भटकता है, बल्कि समाज में अविश्वास और नफरत का माहौल भी बनता है। एक पुरानी, स्थानीय और असंबंधित घटना को CAA विरोध और मुस्लिम समुदाय से जोड़कर फैलाना एक सोची-समझी गलत सूचना की रणनीति का हिस्सा हो सकता है।
निष्कर्ष
सोशल मीडिया पर वायरल हो रही तस्वीर, जिसमें एक शख्स पुलिसकर्मी का जबड़ा पकड़े हुए नजर आ रहा है, वह पश्चिम बंगाल की नहीं बल्कि राजस्थान के जोधपुर की है और साल 2016 की है। इसे क्फ संशोधन अधिनियम के विरोध प्रदर्शन से जोड़कर फैलाया जा रहा है, जो पूरी तरह फर्जी है।