लेजेंडरी मैराथन रनर 114 साल के फौजा सिंह का निधन हो गया है। उनकी मौत एक दर्दनाक सड़क हादसे में हुई, जब वे अपने गांव ब्यास पिंड में सड़क पार कर रहे थे, तभी एक अज्ञात वाहन ने उन्हें टक्कर मार दी। हादसे के बाद फौजा सिंह को तुरंत जालंधर के एक प्राइवेट हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया, जहां उपचार के दौरान उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली। पंजाब के राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया और पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह सहित कई गणमान्य व्यक्तियों ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। आज हम जानेंगे इस मशहूर मैराथन धावक की प्रेरणादायक जीवन कहानी और उनके एथलीट बनने के पीछे की संघर्ष भरी दास्तान।
बचपन से शुरू हुई संघर्ष की कहानी
फौजा सिंह का जन्म 1 अप्रैल 1911 को पंजाब के जालंधर जिले के ब्यास पिंड गांव में हुआ था। वे 4 भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। बचपन में वे बहुत कमजोर और कुपोषित थे। उनकी टांगें इतनी कमजोर थीं कि लोग उन्हें ‘डंडा’ कहकर चिढ़ाते थे, क्योंकि पंजाबी में छड़ी को ‘डंडा’ कहा जाता है। उनके पैर बिल्कुल सूखे और कमजोर लगते थे, जिसे देखकर कोई यह सोच भी नहीं सकता था कि वे भविष्य में दुनिया के मशहूर मैराथन धावक बनेंगे।
रनिंग की शुरुआत 89 साल की उम्र में
फौजा सिंह ने 89 साल की उम्र में दौड़ना शुरू किया, जो किसी के लिए भी चौंकाने वाला था। उन्होंने 6 मैराथन जीतीं और अपने रिकॉर्ड्स से दुनिया को दंग कर दिया। उनकी जिंदगी में एक बड़ा मोड़ तब आया जब 1992 में उनकी पत्नी का निधन हो गया। पत्नी के निधन के बाद वे अपने बेटे के साथ इंग्लैंड चले गए। वहां मॉर्निंग वॉक करते-करते उन्होंने दौड़ना शुरू किया। बेटे कुलदीप ने उन्हें प्रोत्साहित किया और धीरे-धीरे वे मैराथन धावक बने।
संघर्ष और प्रेरणा
1994 में फौजा सिंह के बेटे कुलदीप की एक हादसे में मृत्यु हो गई। बेटे के जाने के गम से उबरने के लिए उन्होंने दौड़ना और भी ज्यादा शुरू कर दिया। दोस्तों और रिश्तेदारों ने उनका हौसला बढ़ाया और वे मैराथन में हिस्सा लेने लगे। इसके बाद फौजा सिंह ने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा। वे भारतीय मूल के ब्रिटिश सिख मैराथन रनर के रूप में प्रसिद्ध हुए और ‘सिख सुपरमैन’ तथा ‘टरबन्ड टॉरनेडो’ के नाम से जाने गए।
फिटनेस का राज़ – अदरक वाली चाय और सादगी
फौजा सिंह पूरी तरह से शाकाहारी थे। उनका मानना था कि फिटनेस का राज़ सादा भोजन और अनुशासन में है। वे कहते थे, “फुल्का, दाल, हरी सब्जियां, दही और दूध खाओ। स्मोकिंग और शराब से परहेज करो। अदरक वाली चाय पियो, लंबा जिओगे। जल्दी सोना चाहिए और हमेशा यह सोचना चाहिए कि कर सकते हैं और करना ही चाहिए।”
चंडीगढ़ के सुखना लेक पर दौड़ते हुए उन्होंने बताया था कि मैराथन के पहले 20 मील दौड़ना आसान है, लेकिन आखिरी 6 मील दौड़ते हुए वे भगवान से बात करते हैं और यही उनकी प्रेरणा है।
जीवन पर बनी बायोग्राफी और बायोपिक
फौजा सिंह की प्रेरणादायक कहानी को मशहूर लेखक खुशवंत सिंह ने ‘टरबन्ड टॉरनेडो’ नामक पुस्तक में संजोया। यह किताब 7 जुलाई 2011 को ब्रिटेन के हाउस ऑफ लॉर्ड्स में रिलीज हुई। इसके अलावा, 2021 में उनकी जीवन कहानी पर एक बायोपिक ‘फौजा’ भी बनाने का ऐलान किया गया, जिसका निर्देशन ओमंग कुमार करेंगे।
फौजा सिंह सिख्स इन द सिटी ग्रुप के सबसे उम्रदराज सदस्य थे, जो चैरिटी के लिए मैराथन दौड़ते थे। उनकी मृत्यु के बाद पंजाब के गवर्नर गुलाब चंद कटारिया ने उन्हें दृढ़ता और प्रेरणा का प्रतीक बताया।
कोच का सम्मान – क्लब हाउस की स्थापना
उनके कोच हरमंदर सिंह ने उनके सम्मान में इलफोर्ड में एक क्लब हाउस की स्थापना के लिए धन जुटाना शुरू किया है। यह क्लब हाउस नए धावकों को प्रशिक्षण देने का केंद्र होगा और फौजा सिंह की यादों को ज़िंदा रखेगा।
फौजा सिंह की जीवन गाथा से सीख
फौजा सिंह की कहानी हम सभी के लिए प्रेरणा है कि उम्र केवल एक संख्या है, और कभी भी अपनी इच्छाओं और सपनों को पूरा करने की कोई सीमा नहीं होती। उनकी मेहनत, लगन और सकारात्मक सोच ने उन्हें दुनिया के सबसे उम्रदराज मैराथन धावक के रूप में प्रसिद्ध किया।
उनका जीवन यह सिखाता है कि कठिनाइयों और दुखों के बावजूद अगर हम संघर्ष करते रहें और हिम्मत न हारें, तो किसी भी मंजिल को पाया जा सकता है। उनके प्रति सम्मान जताते हुए,