भारत में सड़क सुरक्षा और वन्यजीव संरक्षण को एक साथ साधने के लिए नेशनल हाईवे-45 (NH-45) पर एक अभूतपूर्व और हाईटेक प्रयोग शुरू किया गया है। भोपाल से जबलपुर तक बने इस हाईवे पर नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) ने एक ऐसा डिज़ाइन लागू किया है, जो सड़क सुरक्षा के साथ-साथ वन्यजीवों की जान बचाने में क्रांतिकारी साबित हो सकता है। यह भारत का पहला ऐसा प्रयोग है, जहाँ ड्राइवर को बिना किसी सख्त स्पीड ब्रेकर के ही पहले से चेतावनी मिलती है और वाहन की रफ्तार अपने आप कम हो जाती है।
वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिजर्व पर विशेष ध्यान
यह अनोखा पायलट प्रोजेक्ट खासतौर पर उस संवेदनशील हिस्से में किया गया है, जो अब वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिजर्व से होकर गुजरता है। यह क्षेत्र मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा वन्यजीव क्षेत्र है, जिसे पहले नौरादेही अभयारण्य के नाम से जाना जाता था।
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समृद्ध जैव विविधता: इस इलाके में बाघ, तेंदुआ, हिरण जैसी लुप्तप्राय प्रजातियों के अलावा 150 से ज्यादा पक्षी प्रजातियां पाई जाती हैं।
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चीतों का संभावित ठिकाना: कूनो और गांधीसागर के बाद यह क्षेत्र चीतों के तीसरे संभावित ठिकाने के रूप में भी पहचान बना रहा है।
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खतरा: इस इलाके में तेज रफ्तार वाहनों के कारण वन्यजीवों के सड़क हादसों का खतरा लगातार बना रहता था, जिसकी वजह से NHAI ने यह अनोखा 'स्पीड मैनेजर' पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया है।
हाईटेक 'स्पीड मैनेजर' डिज़ाइन
हाईवे के करीब 2 किलोमीटर हिस्से में यह हाईटेक डिज़ाइन लागू किया गया है। यह कोई स्पीड ब्रेकर नहीं, बल्कि एक "स्पीड मैनेजर" की तरह काम करता है:
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डिज़ाइन: सड़क के दोनों ओर सफेद शोल्डर लाइन बनाई गई है और बीच में टेबल-टॉप रेड मार्किंग की गई है।
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तकनीक: यह लाल रंग की सतह सड़क से करीब 5 मिलीमीटर ऊंची और थोड़ी खुरदरी होती है।
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प्रभाव: जब कोई वाहन इस हिस्से से गुजरता है, तो ड्राइवर को तुरंत एक अलग तरह का अहसास होता है (जैसे हल्की थरथराहट), जिससे वह खुद ही अपनी स्पीड कम कर देता है। लाल रंग दूर से ही ड्राइवर को सावधान कर देता है कि आगे वन्यजीवों की आवाजाही का संवेदनशील इलाका है।
वन्यजीवों की सुरक्षित आवाजाही के लिए अन्य इंतजाम
परियोजना के तहत वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए कई अन्य महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं:
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अंडरपास: 11.9 किलोमीटर के हिस्से में जानवरों की सुरक्षित आवाजाही के लिए कुल 25 अंडरपास बनाए गए हैं।
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फेंसिंग: जानवर सीधे सड़क पर न आ सकें, इसके लिए हाईवे के दोनों ओर चेन-लिंक फेंसिंग लगाई गई है।
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निगरानी: स्पीड पर नजर रखने के लिए स्पीड डिटेक्टर डिवाइस भी लगाए गए हैं।
इस पूरे प्रोजेक्ट पर करीब ₹122.25 करोड़ खर्च हुए हैं, जिसमें केवल 2 किलोमीटर की रेड मार्किंग पर लगभग ₹15 लाख की लागत आई है।
NHAI के प्रोजेक्ट डायरेक्टर अमृतलाल साहू के अनुसार, शुरुआती संकेतों में ड्राइवरों द्वारा स्पीड कम करने की पुष्टि हुई है। अब इसका आकलन किया जाएगा कि दुर्घटनाओं में कितनी कमी आती है। अगर यह प्रयोग सफल रहता है, तो इसे मध्य प्रदेश के सभी टाइगर रिजर्व और अभयारण्यों से गुजरने वाले नेशनल हाईवे पर लागू करने का प्रस्ताव है, जिससे सड़क हादसे कम होंगे और वन्यजीव सुरक्षित रहेंगे।