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ऑस्ट्रेलिया के सोशल मीडिया बैन के बाद दुनिया भर में हलचल: जानें भारत समेत अन्य देशों में क्या हैं नियम?

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Posted On:Monday, December 15, 2025

मुंबई, 15 दिसंबर, (न्यूज़ हेल्पलाइन) ऑस्ट्रेलिया ने हाल ही में 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर पूर्ण प्रतिबंध लगाकर दुनिया का पहला ऐसा देश बनने का इतिहास रचा है। इस कदम के बाद अब भारत, यूरोप और अमेरिका समेत दुनिया भर की सरकारें अपने यहाँ बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा को लेकर कानूनों पर विचार कर रही हैं।

अन्य देशों की तैयारी और मौजूदा नियम:
  • भारत: भारत में फिलहाल सोशल मीडिया बैन जैसा कोई कानून नहीं है। हालांकि, 'डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट, 2023' के तहत कंपनियों को 18 साल से कम उम्र के बच्चों का डेटा प्रोसेस करने से पहले माता-पिता की सहमति लेना अनिवार्य है। साथ ही, बच्चों को लक्षित (targeted) विज्ञापन दिखाना भी प्रतिबंधित है।
  • डेनमार्क और मलेशिया: ये दोनों देश भी ऑस्ट्रेलिया की तर्ज पर बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की योजना बना रहे हैं। मलेशिया ने 2026 से 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए इसे लागू करने की घोषणा की है।
  • यूरोपीय संघ (EU): यूरोपीय संघ भी ऑस्ट्रेलिया के मॉडल का अध्ययन कर रहा है। डेनमार्क, फ्रांस, इटली और स्पेन जैसे देश उम्र सत्यापन (age verification) के लिए एक विशेष ऐप का परीक्षण कर रहे हैं।
  • फ्रांस: यहाँ 15 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए माता-पिता की सहमति का नियम है। सरकार अब 15 साल से कम उम्र वालों पर पूर्ण बैन और 15-18 साल के बच्चों के लिए रात में सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर 'कर्फ्यू' लगाने पर विचार कर रही है।
  • अमेरिका: अमेरिका में स्थिति थोड़ी अलग है। यहाँ के कुछ राज्यों में उम्र सत्यापन के नियम तो हैं, लेकिन वे केवल एडल्ट कंटेंट साइट्स के लिए हैं। नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी तकनीकी कंपनियों पर इस तरह के प्रतिबंधों का विरोध किया है।
  • दक्षिण कोरिया: दक्षिण कोरिया ने फिलहाल सोशल मीडिया पर बैन न लगाने का फैसला किया है, लेकिन मार्च 2026 से स्कूलों में मोबाइल फोन के इस्तेमाल पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया जाएगा।


क्यों उठ रहे हैं ये कदम?

विशेषज्ञों और सरकारों का मानना है कि सोशल मीडिया के एल्गोरिदम बच्चों की मानसिक स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहे हैं। 'डिजिटल डिटॉक्स' और बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए ये कड़े कानून लाए जा रहे हैं।

ऑस्ट्रेलिया के इस फैसले को दुनिया भर के लिए एक 'रेगुलेटरी टेम्पलेट' (नियामक ढांचा) के रूप में देखा जा रहा है। आने वाले समय में कई और देश इसी तरह के सख्त कानून लागू कर सकते हैं।


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