वर्तमान में चीन और जापान के बीच जिस प्रकार का तनाव व्याप्त है, उसे देखकर कई बार ऐसा प्रतीत होता है कि स्थिति युद्ध के मुहाने पर है. चीन का पड़ोसी देशों के प्रति यह आक्रामक रवैया कोई नई बात नहीं है. इस संदर्भ में, जापान चीन के साथ अपने संबंधों को संभालने के लिए भारत के दशकों पुराने अनुभव से महत्वपूर्ण सबक सीख सकता है. जापानी विशेषज्ञ प्रोफेसर पेमा ग्लालपो ने भी यह स्वीकार किया है कि भारत जिस आत्मसम्मान और आत्मविश्वास के साथ दशकों से चीन के साथ अपने जटिल संबंध बनाए हुए है, वह अनुकरणीय है.
चीन, 60 वर्षों से भारत के साथ वैसी ही आक्रामकता दिखाता रहा है, जैसी अब वह जापान के साथ प्रदर्शित कर रहा है. 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद से स्थितियाँ बेहद बिगड़ चुकी थीं, और आज जापान के सामने चीन की बढ़ती समुद्री आक्रामकता वैसी ही चुनौती पेश कर रही है.
प्रोफेसर पेमा के अनुसार, भारत को जहाँ हिमालयी सीमा पर चीन की बदलती रणनीति से जूझना पड़ता है, वहीं जापान को पूर्वी चीन सागर और सेनकाकू द्वीपों के आसपास चीन की बढ़ती समुद्री गतिविधियों का सामना करना पड़ता है. दोनों देशों के लिए स्थिति अलग होने के बावजूद, चीन का तरीका एक जैसा ही है: धीरे-धीरे जमीन और समुद्री क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति बढ़ाना और पुराने समझौतों को नकार देना.
भारत की दृढ़ता और संयमित प्रतिक्रिया
अप्रैल 2020 में, लद्दाख में चीन ने उन क्षेत्रों में अपनी सेनाएँ भेजीं, जहाँ पहले भारत की नियमित गश्त हुआ करती थी. यह सब 1993 से 2013 के बीच हुए सीमा पर यथास्थिति बनाए रखने वाले समझौतों का उल्लंघन था. भारत ने इस आक्रामकता का जवाब न तो तनाव बढ़ाकर दिया और न ही किसी बाहरी दबाव में आया.
भारत ने इसका जवाब संयम, दृढ़ता और ठोस प्रतिक्रिया से दिया:
-
$18$ दौर की सैन्य वार्ताएँ कीं.
-
विवादित क्षेत्रों में बफर जोन बनाए.
-
सीमा पर निगरानी बढ़ाई और सड़क तथा लॉजिस्टिक ढाँचे को मजबूत किया.
भारत की यही संयमित लेकिन ठोस प्रतिक्रिया उसकी स्थिति को मजबूत कर रही है. विशेषज्ञों का मानना है कि जापान को भी अपने समुद्री क्षेत्रों में इसी स्थिति का सामना करने के लिए भारत की तरह निगरानी बढ़ाने, इन्फ्रास्ट्रक्चर मजबूत करने और साथ ही कूटनीति के रास्ते खुले रखने की आवश्यकता है.
आर्थिक संबंध और रणनीतिक वार
आर्थिक संबंधों की बात करें तो, तनाव के बावजूद भारत-चीन व्यापार 2024-25 में लगभग $128$ अरब डॉलर तक पहुँच गया. जापान और चीन के व्यापारिक रिश्ते भी गहरे हैं. यहाँ भारत का अनुभव बताता है कि आर्थिक जुड़ाव, सुरक्षा जोखिमों को खत्म नहीं कर सकता.
इसी कारण, भारत ने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सख्ती अपनाई:
-
टेक्नोलॉजी और निवेश से जुड़े कई क्षेत्रों में नियम कड़े किए.
-
कई चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाया.
-
घरेलू उत्पादन को बढ़ावा दिया.
इसी तरह जापान भी 'चाइना प्लस वन' नीति अपनाकर अपने उद्योगों को चीन से बाहर, विशेषकर भारत की ओर मोड़ रहा है. उसे आगे भी ऐसे ही रणनीतिक कदम उठाने की जरूरत है.
भारत-जापान की साझेदारी का महत्व
भारत और जापान दोनों ने साझेदारी को अपनी रणनीति का अहम हिस्सा बनाया है. क्वाड (QUAD), रक्षा सहयोग, समुद्री सुरक्षा और तकनीकी समझौते इन रिश्तों को मजबूत बनाते हैं. साल 2025 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जापान की प्रधानमंत्री साने ताकाइची की मुलाकात में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), सेमीकंडक्टर और सप्लाई चेन पर गहरी चर्चा हुई. ये कदम दोनों देशों को सुरक्षित और आत्मनिर्भर बनाने में मदद करेंगे, जो चीन की आक्रामकता का सामना करने के लिए अत्यंत आवश्यक है.